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Showing posts from June, 2020

ढूंडू खुद को

ढूँढू  खुद को ☺ लोगो के भीड़ में,  ढूँढू  खुद को, मेरी तन्हाई में,  ढूँढू  खुद को, ढूंढे नजरे किसे पता नही....... पर जब भी  ढूँढू  पाऊ किसी और को, क्या है ये ना समझता मुझ को, कुछ बताना चाहे नजरे तुझ को, आखे तो मेरी है पर ध्यान नहीं, मिली जब नजरे तो चोट लगी वजूद को, इसलिए ........... लोगो के भीड़ में ढूंढा खुद को, मेरी तन्हाई में ढूंढा खुद को, ढूंढे ना मेरी नजरे मुझे ........।  की कहीं चोट ना लग जाये मेरे वजूद को .........☺☺☺☺

BARISH

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बारिश  खुली आखे टूटे , सपनो के तार ...                                         ठंडी हवा लाई संग पंछियो की पुकार ..!!!!   खिली बंद कालिया सभी , भिगाती बारिश की बुँदे ..... चलते सड़को पर ... बहता पानी किनारा ढूंढे ..!!!!!   गरम चाय का प्याला , संग पकोड़े घर घर , मिट्टी की खुसबू महके ,    लगे वक्त गया ठहर ..!!   मौसम की उमंग , लाये दिल में बहार ... हरियाली छाय .. लाए   सकारात्मक विचार .!!!!.  

Face of love

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                      फेस ऑफ़ लव  ( अनोखे रूप प्यार के ....)   प्यार के रूप बहुत देखे, देखे प्यार के चेहरे ,          पहला रूप था ममता का          और चेहरा माँ के मेरे.....                                                                             प्रेम शब्द मिलता हर जगह,                समर्पण जो मीरा ने किया,                                 भक्तिरूप लिए प्रेम का,                                  सम्पूर्ण संसार याग दिया .....             सीस   उथाए   लड़ता   सिपाही ,          देश   प्रेम   का   रूप   दिखलाई         बलिदान   कर   के   खुद   के   प्राण         धरती   माँ   की   शान   बढ़ाई ......                          ख़तम हो जाये वो प्यार नहीं समझ जाये .... ना वो प्यार सही , मिले सुकुन जो दिल को कहीं सच्चे प्यार की पहचान   यही ..........  

गुजरा कल

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गुजर गए दिन साथ खेल कर, बड़े हुए पर गूंजे वहीं शोर लड़ने पर,                                                     साथ पढ़ना साथ सीखना यहीं  पर , ना पता था कभी चली जाएगी वो छोड़ कर , उसकी मीठी सी डाट कहीं गुम  हो गई, घर तो वहीं है,  पर आवाज सुन हो गई, परछाई मैं उसकी बात ये मालूम हो गई, बस फर्क इतना था.... जो तू थी कल,आज वो तुम हो गई उलझ गई वो तो अब नए रिश्तों मे, लग रही थी कुछ ऐसी गाठ बालो के फीतों मे, जो सुलझाती , वो किस्से रह गए मेरे हिस्सो मे, आती उसी के घर अब वो लम्हो के किश्तों मे, लिखती मैं यादे बचपन की इस किताब पर, क्यूँ हुई वो पराई जब देखे सपने साथ अगर, ना समझे मुझे दुनिया की ये रीतरिवाज , सवाल करती मैं लोगो की इस हिसाब पर ।।।

परिंदे

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                                                           परिंदे..... ऐ.........परिंदे जी ले तू भी अपनी जिंदगी छोड़ दुनिया की भाग दौड़ झाक भीतर अपने  कुछ अलग सी है पहचान तेरी, तराश ले........  उस हुनर को और ......, खुद की कर बंदगी.........।  जहाँ भी जाये तू अपनी पहचान छोड़ दे , कर कुछ ऐसा जो निशान छोड़ दे । जाना है दूर तुझे अपने मक़ाम पर, ऐ परिंदे .......तू भी अपने सपनो की उड़ान भर ले।  सब कुछ तू ही और सब कुछ तुझमे है  यकीं कर मेरा की रब तुझ में है ........।  विश्वाश के पहिये पर चलती रेल है , ना उलझ इसमें ये तो जिंदगी का खेल है ..........।