परिंदे
परिंदे.....
ऐ.........परिंदे जी ले तू भी अपनी जिंदगी
छोड़ दुनिया की भाग दौड़ झाक भीतर अपने
कुछ अलग सी है पहचान तेरी, तराश ले........
उस हुनर को और ......, खुद की कर बंदगी.........।
जहाँ भी जाये तू अपनी पहचान छोड़ दे ,
कर कुछ ऐसा जो निशान छोड़ दे ।
जाना है दूर तुझे अपने मक़ाम पर,
ऐ परिंदे .......तू भी अपने सपनो की उड़ान भर ले।
सब कुछ तू ही और सब कुछ तुझमे है
यकीं कर मेरा की रब तुझ में है ........।
विश्वाश के पहिये पर चलती रेल है ,
ना उलझ इसमें ये तो जिंदगी का खेल है ..........।
Awesome Poem....
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